दिल्ली: राजधानी दिल्ली भीषण गर्मी और जल संकट की मार झेल रही है। उत्तर-पश्चिम दिल्ली से लेकर दक्षिणी और मध्य दिल्ली तक, हर मोहल्ला पानी की बूंद-बूंद को तरस रहा है। टंकियां सूखी हैं, टैंकरों की लाइनें लंबी हैं और बोतलबंद पानी के दाम आसमान छू रहे हैं। हालात ऐसे बन चुके हैं कि लोगों को अब पानी खाना बनाने और राशन से भी ज़्यादा महंगा पड़ रहा है। उत्तर-पश्चिम दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-34 में डीडीए फ्लैट्स में किराए पर रह रहीं 65 वर्षीय शकुंतला देवी बताती हैं कि वह दिन में दो बार मोटर चलाती हैं, फिर भी मुश्किल से एक गिलास पानी मिलता है। “पेंशन से ज़्यादा ख़र्च पानी पर हो रहा है। बीस लीटर की बोतल 40 रुपये की आती है और कई बार एक दिन में दो बोतलें लग जाती हैं,” उन्होंने निराशा जताई। दो साल पहले तक उनके घर नल से पानी आता था, अब सिर्फ़ उम्मीदें बची हैं। इसी तरह दीपक नामक निवासी कहते हैं, “ग्राउंड फ्लोर पर होने के बावजूद 30 रुपये की बोतल लेनी पड़ती है। ब्रांडेड पानी लेना तो दूर की बात है।” उनकी पत्नी का कहना है कि आय का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ़ पानी पर खर्च हो रहा है।
दिल्ली में बढ़ती मांग, घटती आपूर्ति
दिल्ली जल बोर्ड के आँकड़ों के मुताबिक़, राजधानी को रोज़ 129 करोड़ गैलन पानी चाहिए, लेकिन आपूर्ति केवल 100 करोड़ गैलन की हो पा रही है। यानी रोज़ाना 30 करोड़ गैलन पानी की किल्लत बनी हुई है। बढ़ती आबादी और तापमान के बीच यह संकट और गंभीर होता जा रहा है। दक्षिणी दिल्ली के संगम विहार के देवली इलाके में कटोरी देवी के घर दो महीनों से पानी नहीं आया। वह 1500 रुपये में एक टैंकर मंगवाकर किसी तरह गुज़ारा कर रही हैं। बारिश का पानी, एसी से गिरने वाली बूंदें और टपकती नालियों का पानी भी जमा कर उपयोग करना मजबूरी बन गया है। कटोरी देवी की बहू सीमा देवी कहती हैं, “अब जितना खर्च रसोई का है, उससे ज़्यादा पानी का है। पानी हमें खाने से भी ज़्यादा महंगा पड़ रहा है।”

गांव भेजने की मजबूरी
संकट इतना गहरा चुका है कि कुछ परिवार अपने बच्चों और बहुओं को गांव भेजने को मजबूर हैं। पूनम देवी बताती हैं, “पानी नहीं है तो ज़िंदगी नर्क है। इतनी गर्मी में नहाने और खाना बनाने तक का पानी नहीं मिलता। हर 15 दिन में 2000 लीटर का टैंकर खरीदना संभव नहीं।”
अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों का बुरा हाल
दिल्ली में 1700 से अधिक अनधिकृत कॉलोनियाँ हैं, जिनमें कई जगह पाइपलाइन तो बिछी है लेकिन पानी की नियमित आपूर्ति नहीं। झुग्गी बस्तियों में हालात और बदतर हैं। देवली में टैंकर से 20 लीटर पानी के 10 रुपये वसूले जाते हैं। वहीं जो लोग बोतलबंद पानी मंगवाते हैं, उन्हें 20 लीटर के लिए 30-40 रुपये और ब्रांडेड बोतलों के लिए 90-100 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं। दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के वसंत कुंज में भी स्थिति सुधरी नहीं। यहां पूजा भाटिया बताती हैं कि पानी में टीडीएस इतना ज़्यादा है कि बिना आरओ के पीना मुमकिन नहीं। “25 हज़ार में आरओ लगवाया, हर साल 6000 रुपये रखरखाव में खर्च होते हैं।”
झुग्गियों में टैंकर के लिए मारामारी
चाणक्यपुरी की विवेकानंद झुग्गी बस्ती में टैंकर के लिए रोज़ाना शाम 6 बजे भीड़ जुटती है। बच्चे कई सौ मीटर पहले ही टैंकर पर दौड़ लगाते हैं। गीता कॉलोनी के पास भी टैंकर के लिए लंबी कतारें लगती हैं।
नीति आयोग और विशेषज्ञों की चेतावनी
नीति आयोग के जल प्रबंधन सूचकांक के मुताबिक़, दिल्ली भारत का दूसरा सबसे जल संकटग्रस्त शहर है। दिल्ली का 61 प्रतिशत पानी यमुना, 30 प्रतिशत गंगा नहर और 9 प्रतिशत भूजल से आता है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरमेंट एंड वॉटर के नितिन बस्सी कहते हैं, “100 यूनिट में से 60 ही लोगों तक पहुँचता है, बाकी 40 यूनिट लीकेज और चोरी में बर्बाद होता है।” वे पानी की बर्बादी रोकने और ट्रीटेड वेस्ट वाटर को अन्य कामों में इस्तेमाल करने की सिफारिश करते हैं।
संकट बन सकता है सामाजिक तनाव का कारण
जेएनयू के प्रो. प्रकाश चंद कांडपाल मानते हैं कि पानी का यह संकट आगे चलकर सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है। उन्होंने कहा, “जो लोग झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं, उन्हें रोज़ पानी के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है। ऐसे हालात में आपसी झगड़े बढ़ते हैं और सरकार के प्रति रोष भी।”

क्या है समाधान?
दिल्ली जल संकट की विकराल होती स्थिति को देखते हुए दिल्ली जल बोर्ड ने राजधानी के सभी हिस्सों में पानी पहुंचाने के इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने का दावा किया है। टैंकरों की संख्या में भी इज़ाफा किया गया है, ताकि उन बस्तियों और कॉलोनियों तक पानी पहुँचाया जा सके जहाँ पाइपलाइनों की सुविधा या नियमित आपूर्ति नहीं है। दिल्ली जल बोर्ड ने जीपीएस सिस्टम से टैंकरों को ट्रैक करने की व्यवस्था भी शुरू की है, ताकि हर टैंकर की लोकेशन और डिलीवरी का रिकॉर्ड रखा जा सके और पानी की चोरी व ब्लैक मार्केटिंग पर लगाम लगाई जा सके।
सबसे बड़ी चुनौती : पानी की बर्बादी
हालाँकि विशेषज्ञों के मुताबिक़, दिल्ली जल बोर्ड के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपूर्ति के दौरान पानी के नुक़सान (वॉटर वेस्ट) की है। जल बोर्ड के अपने अनुमान के अनुसार, दिल्ली में हर रोज़ सप्लाई होने वाले पानी का लगभग 40 फ़ीसदी हिस्सा लीकेज, अवैध कनेक्शन, अवैध टंकियों और चोरी की वजह से बर्बाद हो जाता है। ये लीकेज पुराने जर्जर पाइपलाइनों, अव्यवस्थित वितरण प्रणाली और कुछ स्थानों पर टैंकर माफिया की वजह से बढ़ता जा रहा है।
पानी पर सब्सिडी और आर्थिक दबाव
दिल्ली में घरेलू उपभोग के लिए 20 हज़ार लीटर पानी तक मुफ़्त पानी देने की योजना भी दिल्ली जल बोर्ड की आर्थिक सेहत पर भारी पड़ रही है। 2023 के डेटा के मुताबिक, दिल्ली जल बोर्ड पर 73 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का क़र्ज़ है, जो 2018 की तुलना में लगभग दोगुना हो चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पानी पर सब्सिडी सिर्फ़ ज़रूरतमंद और गरीब तबके तक ही सीमित रहनी चाहिए ताकि जल बोर्ड को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने और इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड करने के लिए संसाधन मिल सकें।
दिल्ली जल बोर्ड की प्रतिक्रिया ?
इस रिपोर्ट के लिए दिल्ली जल बोर्ड से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।
सवाल अब भी वही है : क्या दिल्ली तैयार है?
जैसे-जैसे गर्मियों का पारा चढ़ रहा है, वैसे-वैसे दिल्ली का जल संकट गहराता जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ पानी की आपूर्ति बढ़ाना समाधान नहीं, बल्कि ज़रूरत है पानी के प्रति नज़रिए में बदलाव और उपयोग की आदतों को संयमित करने की। बर्बादी रोकना, अवैध कनेक्शनों पर सख्ती, लीकेज सुधारना और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण ही इस समस्या का स्थायी हल हो सकता है। अब सवाल यही है कि क्या दिल्ली इसके लिए मानसिक रूप से तैयार है? और क्या प्रशासन और नागरिक मिलकर पानी को महज़ मुफ्त मिलने वाला साधन न मानकर, एक अमूल्य संसाधन के रूप में उसका संरक्षण करना शुरू करेंगे?
दिल्ली का भविष्य इसी पर टिका है।
पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत का संकट दिल्ली की सड़कों से लेकर आलीशान अपार्टमेंट तक पहुंच चुका है। जब तक सरकार ठोस और दीर्घकालीन योजना नहीं बनाएगी, यह संकट केवल गर्मियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि सामाजिक असंतोष का कारण बन सकता है।